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बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

उत्तम चरित्र

                     

                                              उत्तम चरित्र


 उत्तम चरित्र व्यक्ति की सबसे बड़ी संपदा है। चरित्र से ही व्यक्तित्व आकार पाता है। चरित्र मन को उज्ज्वल करता है। जीवन को संवारता है। चरित्र के प्रभाव से ही लोग मित्र बनते हैं और सुख संपत्ति के मार्ग खुलते हैं। संसार में मनुष्य के पास यदि सभी साधन हैं, परंतु आदर्श चरित्र नहीं है तो सब व्यर्थ।


 एक बौद्ध कहावत है कि-विचार से कर्म की उत्पत्ति होती है, कर्म से आदत की उत्पत्ति होती है, आदत से चरित्र की उत्पत्ति होती है और चरित्र से आपके प्रारब्ध/कर्म फल की उत्पत्ति होती है।व्यक्ति को योग्यता की वजह से सफलता मिलती है और चरित्र से ही उस सफलता का संरक्षण संभव है। जो सफल व्यक्ति अपने चरित्र को नहीं निखारते उनकी सफलता स्थायी नहीं रहती। 


                 रावण और कंस आदि पराक्रमियों के पास अपार शक्ति थी, परंतु उनका चरित्र आदर्श नहीं था। इसी कारण समाज उनका तिरस्कार करता है। वस्तुत: धन बल और बाहुबल से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है चरित्रवान बनना। इसलिए जीवन में चरित्र को सुधारना ही मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए। हम चाहे किसी भी क्षेत्र में सक्रिय हों, हमें चरित्र को बनाकर और बचाकर रखना चाहिए।

               निष्कलंक चरित्र निर्माण के लिए नम्रता, अहिंसा, क्षमाशीलता, गुरुसेवा, शुचिता, आत्मसंयम, विषयों के प्रति अनासक्ति, निर्भयता, दानशीलता, स्वाध्याय, तपस्या और त्याग-परायणता जैसे गुण विकसित करने चाहिए।

               ज्ञान के बिना चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए शिक्षा के साथ-साथ युवा शक्ति का चरित्र निर्माण आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। चरित्र के निर्माण में परिवार की अहम भूमिका होती है। माता-पिता जैसा करते हैं, वैसा ही बच्चे सीखते हैं।चरित्र को अधिक प्रभावित करने में परिवार के बाद विद्यालय का परिवेश, सामाजिक रहन-सहन, व्यवहार व वातावरण भी विशिष्ट स्थान रखते हैं। ऐसे में कह सकते हैं एक कच्चे घड़े की तरह युवा पौधों को संस्कारित करना पूरे समाज का दायित्व है।


                                                                                                           देवेन्द्र कुमार शर्मा

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