धारा 370 और आर्टिकल 35A का इतिहास?
धारा 370 और आर्टिकल 35A के इतिहास को समझेंगे तभी यह समझ पाएंगे कि इसे हटाना कितना मुश्किल या सरल है। दरअसल, जब अंग्रेज अपने उपनिवेशों को छोड़कर जा रहे थे तब उन्होंने भारत के भी दो हिस्से करने का प्लान बनाया और उन्होंने उसे सफलतापूर्वक लागू भी कर दिया।
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 भारतीय संविधान के पहले का संविधान है। इस एक्ट के सेक्शन 311 में भारत की परिभाषा लिखी है। उसमें लिखा है कि ब्रिटिश इंडिया इन्क्लूडिंग प्रिंसली स्टेट्स यानी भारत जो है, वह ब्रिटिश इंडिया और प्रिंसली स्टेट्स को मिलाकर है। मतलब यह कि जब पासपोर्ट बनता था तो आपको ब्रिटिश इंडिया से लेना पड़ता था, भले ही आप किसी रियासत के राजा क्यों न हो।
मतलब यह कि जब अंग्रेज यहां से जा रहे थे तो वे भारत छोड़कर जा रहे थे, किसी रियासत को नहीं। स्वाभाविक ही ये सभी रियासतें मिलाकर भारत ही थीं। जब रियासतें भारत में ही थीं तो विलय का कोई मतलब ही नहीं बनता। जब भारत से रियासतें बाहर हैं ही नहीं तो कैसा विलय? लेकिन फिर भी विलय का प्रारूप बनाया गया,क्योंकि भारत के दो टूकड़े किए जा रहे थे। एक का नाम पाकिस्तान और दूसरे का नाम हिंदुस्तान हुआ। ऐसे में विलय पत्र जरूरी था।
प्रारूप बनाकर 25 जुलाई 1947 को माउंटबेटन की अध्यक्षता में सभी रियासतों को बुलाया गया। इन सभी रियासतों को बताया गया कि आपको अपना विलय करना है। वह हिन्दुस्तान में करें या पाकिस्तान में, यह आपका निर्णय है। जाहिर सी बात थी कि माउंटबेटन के प्लान में किसी भी राज्य को स्वतंत्र रहने का अधिकार नहीं था। उसे दो में से किसी एक देश को चुनना था। उस विलय पत्र को सभा में बांट दिया गया।
यह विलय पत्र सभी रियासतों के लिए एक ही फॉर्मेट में बनाया गया था जिसमें कुछ भी लिखना या काटना संभव नहीं था।
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