द्रौपदी के स्वयंवर (महाभारत प्रसंग )
द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त श्री कृष्ण" ने अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि, हे पार्थ तराजू पर पैर संभलकर रखना,संतुलन बराबर रखना, लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो उसका खास खयाल रखना, तो अर्जुन ने कहा, "हे प्रभु " सबकुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे???
वासुदेव हंसते हुए बोले, हे पार्थ जो आप से नहीं होगा वह मै करुंगा,
पार्थ ने कहा प्रभु ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकता???
वासुदेव फिर हंसे और बोले, जिस अस्थिर, विचलित, हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे , उस विचलित "पानी" को स्थिर "मैं" रखुंगा !!
कहने का तात्पर्य यह है कि, आप चाहे कितने ही निपुण क्यूँ ना हो , कितने ही बुद्धिवान, महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हो, आप स्वंय हर एक परिस्थिति के ऊपर पूर्ण नियंत्रण नहीँ रख सकते ..
आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है और जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभलता है उसी का नाम "विधाता" है ...
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