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रविवार, 3 जुलाई 2022

जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

 *जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी मान्यताएं*---

भगवान की लीला को आजतक कोई भी पूरी तरह से समझ नहीं पाया है, लेकिन उनकी अद्भुत लीलाओं के कुछ उदाहरण ज़रूर हमें विभिन्न स्थानों पर देखने को मिल जाते हैं। ऐसे ही पवित्र स्थानों में से एक है भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर।


मान्यताओं के अनुसार, यहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है। जगन्नाथ पुरी से जुड़ी ऐसी कई मान्यताएं हैं, जो हमें ईश्वर की उपस्थिति का वास्तविक अनुभव करवाती हैं। आज हम उन सभी मान्यताओं के बारे में इस लेख में बात करेंगे, साथ ही हम आपको इस मंदिर से जुड़े हुए तथ्यों के बारे में भी बताएंगे-


सबसे पहले जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई के बारे में बात करें तो इसकी ऊंचाई 214 फुट है और ये 4 लाख वर्ग फुट तक फैला हुआ है। आश्चर्य की बात यह है कि इस भव्य मंदिर के गुंबद की छाया दिन के समय में कभी भी नहीं बनती है। इसके शीर्ष पर एक सुदर्शन चक्र लगा हुआ है। जिसे पुरी में किसी भी स्थान से देखने पर वो हमेशा एक समान ही दिखाई पड़ता है। इससे ये कहा जा सकता है कि यह मंदिर आस्था का मुख्य केंद्र होने के साथ, वास्तुकला का भी बेहतरीन उदाहरण है।

इसके अलावा मंदिर के ऊपर ध्वज स्थापित किया गया है। इस ध्वज की खास बात ये है कि ये सदैव हवा से विपरीत दिशा में ही लहराता है। जिसे प्रतिदिन सायंकाल के समय लोगों द्वारा 45 मंजिल उल्टा चढ़कर बदला जाता है।


मंदिर का मुख्य द्वार सिंहद्वार है। इस दरवाजे से प्रवेश करने के बाद लहरों की आवाज़ स्पष्ट रूप से सुनाई देती है, लेकिन सिंह द्वार के प्रवेश द्वार से मंदिर के अंदर आ जाने के बाद समुद्र की लहरों का शोर बिल्कुल भी सुनाई नहीं देता है। वहीं मंदिर के बाहर आने पर फिर से लहरों की आवाज़ सुनाई देने लग जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह दो प्रभुओं की बहन सुभद्रा माई की इच्छा थी, जिन्होंने मंदिर के द्वार के भीतर शांति की कामना की थी, जिसे भगवान द्वारा विधिवत पूरा भी किया गया।

श्री जगन्नाथ मंदिर में स्थित रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। इस रसोई में हर दिन 500 के करीब रसोइए और 300 के आस पास सहयोगी भोजन बनाते हैं। प्रसाद बनाने के लिए एक के ऊपर एक 7 बरतनों को रखा जाता है। आपको ये जानकर भी हैरानी होगी जो पात्र सबसे ऊपर रखा होता है उसमें भोजन सबसे पहले बनता है और फिर उसके नीचे वाले पात्र में बनता है, और जिस पात्र में सबसे ज्यादा आंच पड़ रही है यानी कि सबसे नीचे उसमें सबसे बाद में भोजन बनकर तैयार होता है।साथ ही, इस मंदिर से जुड़ी एक और रोचक बात यह है कि इसके गुंबदों पर आपको एक भी पक्षी नहीं दिखेगा। इस मंदिर के ऊपर भी पक्षी या हवाई जहाज उड़ते हुए नज़र नहीं आते हैं।


इस मंदिर से जुड़ी हुई सबसे दिलचस्प मान्यता यह है कि यहां पर श्रीकृष्ण का हृदय, ब्रह्म पदार्थ के रूप में मौजूद है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब श्री कृष्ण की लीला अवधि पूर्ण हुई तो वे देह त्याग कर बैकुंठ चले गए। उनके पार्थिव शरीर का पांडवों ने दाह संस्कार किया। लेकिन शरीर ब्रह्मलीन होने के बाद भी भगवान का हृदय जलता ही रहा। तब उनके हृदय को जल में प्रवाहित कर दिया। जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और उड़ीसा के समुद्र तट पर पहुंच गया!

इस प्रक्रिया में भगवान जगन्नाथ व अन्य मूर्तियों को बारह वर्षों बाद बदला जाता है। तब पूरे शहर में बिजली बंद करके अंधेरा कर दिया जाता है। यहां तक की मंदिरों में भी अंधेरा कर दिया जाता है। इसके पश्चात नवकलेवर नामक एक अनुष्ठान किया जाता है। इस अनुष्ठान के तहत, चुनिंदा पुजारियों की आंखों पर पट्टियां बांधकर मंदिर में भेजा जाता है, और वह इन मुर्तियों में से ब्रह्म पदार्थ निकाल कर नई मूर्तियों में सावधानी पूर्वक स्थापित कर देते हैं।


यह पदार्थ वास्तविकता में क्या है, ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है। लेकिन इन सब मान्यताओं के कारण, यहां पर लोगों की आस्था निहित है और दूर-दराज से लोग यहां पर अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। अगर आपको भी मौका मिले तो इस शुभ यात्रा का हिस्सा अवश्य बनें।

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