वेद और मनुस्मृति में नारी की महिमा
वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है। वैदिक काल में नारी अध्ययन अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी,जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी । कन्या को अपना वर स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद उनको पुरुष से एक कदम आगे रखते हैं । अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हुई हैं जैसे अपाला, घोषा,सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति, दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि। वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामयी व उच्च स्थान प्रदान करते हैं। वेदों में स्त्रियों की शिक्षा,दीक्षा,शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है । वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं, देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं। वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय । वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं-
वेदों में नारी की महिमा
१. उषा के समान प्रकाशवती- ऋग्वेद ४/१४/३- हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।
२. वीरांगना- यजुर्वेद ५/१०- हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।
३. वीर प्रसवा- ऋग्वेद १०/४७/३- राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे ? हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।
४. विद्या अलंकृता- यजुर्वेद २०/८४- विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.
५. स्नेहमयी माँ - अथर्वेवेद ७/६८/२ हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.
६. अन्नपूर्ण- अथर्ववेद ३/२८/४ इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।
: *मनुस्मृति में नारी का सम्मान-*
*३.५६-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। अर्थात् जहां स्त्रियों का सत्कार और सम्मान होता है, वहां श्रेष्ठ लोगों व देवताओं का वास होता है।*
*३.५७- शोचन्ति जामयो यत्र विनष्यत्याषु तत्कुलम्र। न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तध्दि सर्वदा॥ अर्थात् जिस समाज में स्त्रियां शोक व चिंताग्रस्त होती हैं, वह समाज शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहां स्त्रियां निष्चिंत और सुखी रहती हैं, वह समाज सदैव विकास करता रहता है।*
*८.३५२- स्त्रियों पर बलात्कार करने वाले, उन्हें उत्पीडित करने वाले, व्यभिचार में प्रवृत्त करने वाले व आतंकित करने वाले को भयानक दण्ड दें ताकि कोई दूसरा इस विचार से भी कांप जाए।*
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