यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 10 जून 2021

शनि देव की जन्म कथा

 शनि देव की जन्म कथा

स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र है। कथा के अनुसार सूर्य का विवाह प्रजापति की पुत्री संज्ञा से हुआ। संज्ञा अपने पति से बेहद स्नेह करती थी और अज्ञानता के कारण सदैव उनके तेज अर्थात अग्नि को कम करने के लिए प्रयासरत रहती थी। समय बीतने के साथ संज्ञा को तीन संतानों की प्राप्ति हुई। जिन्हें हम वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना के नाम से जानते है। इन सब के बावजूद भी संज्ञा के मन में सूर्य की अग्नि को कम करने की तीव्र इच्छी थी। एक दिन उन्होंने तप कर सूर्य देव की अग्नि को कम करने का निश्चय कर लिया।  उनके सामने पत्नी धर्म और बच्चों के पालन पोषण का सवाल था, इसलिए संज्ञा ने अपने तप से अपनी एक हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा।काम्या 


माता संज्ञा ने अपने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को सौंप कर कहा कि अब मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन पोषण करते हुए नारीधर्म का पालन करो, लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहना चाहिए। जिसके बाद संज्ञा वहां से अपने पिता के घर पहुंची और अपनी परेशानी बताई, लेकिन पिता ने उन्हें समझाकर वापस अपने पति के पास जाने को कहा।  संज्ञा ने वहां से वन में जाकर कठोर तप करने का निश्चय किया। संज्ञा ने वन में एक घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या प्रारंभ कर दी। वहीं सूर्यदेव को इस बात का जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ संज्ञा नहीं अपितु छाया संवर्णा रह रही है। संवर्णा पति धर्म का पालन करते हुए गर्भवती हुई और उन्होंने तीन संतानों मनु, शनिदेव और भद्रा को जन्म दिया। इस प्रकार शनि देव का जन्म सूर्य और छाया संवर्णा की दूसरी संतान के रूप में हुआ. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें